Varanasi: धर्म, कला और संस्कृति की नगरी काशी में रथयात्रा मेले की शुरुआत होने जा रही है। भक्तों के प्रेम में सहस्त्रधारा स्नान के बाद बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ ने पखवाड़े भर बाद भक्तों को दर्शन दिया। 15 दिनों के अंतराल के बाद भक्त और भगवान की दूरी खत्म होने का अहसास हर किसी के चेहरे पर नजर आ रहा है। सुबह से ही अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों की कतार लगी रही। आज सोमवार 19 जून को भगवान मनफेर के लिए सपरिवार डोली पर सवार होकर काशी की गलियों में भ्रमण के लिए निकलेंगे। इस रथयात्रा मेले में हर रोज 1 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं।
भगवान के स्वस्थ होने पर खोल दिया गया मंदिर का कपाट
रविवार 18 जून को भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के स्वस्थ होने पर सुबह मंदिर का कपाट खोल दिया गया। सुबह छह बजे पुजारी ने भगवान की मंगला आरती उतारी। आठ बजे परवल के जूस का भोग लगाया गया। ट्रस्ट जगन्नाथजी के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि 15 दिन की बीमारी और बेड रेस्ट के बाद भगवान फिर से भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ ही बड़े भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा का भव्य श्रृंगार किया गया है।

काशी में रथ की जगह पर डोली पर सवार होते हैं भगवान
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि काशी और पुरी की रथयात्रा में एक ही अंतर है। वाराणसी में रथ की जगह पर भगवान की यात्रा डोली पर निकलती है। जबकि पुरी में रथ पर। 19 जून को मंदिर सुबह 5 बजे से खुल जाएगा। मंगला आरती और श्रृंगार के बाद दोपहर 3.30 बजे अस्सी स्थित मंदिर से डोली यात्रा का आह्वान होगा।
डोली में भगवान जगन्नाथ के साथ बड़े भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा को बिठाया जाएगा। बाजा और संगीत के साथ डोली यात्रा शुरू होगी। यह डोली यात्रा अस्सी से नवाबगंज, कश्मीरी गंज, शंकुलधारा, बैजनत्था मंदिर से बेली राम के बाग तक जाएगी। यहां पर रात्रि विश्राम के बाद 20 जून की सुबह भगवान की मंगला आरती के बाद रथ पर रखा जाता है। यहां से रथयात्रा मेले की शुरुआत हो जाती है।
इसके बाद 20 से 22 जून तक रथयात्रा मेला चलेगा। 23 जून की आधी रात की जगन्नाथ आरती के बाद भगवान को सपरिवार बड़े भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में पहुंच जाएंगे।
221 वर्ष पुरानी काशी की रथयात्रा
1802 में शुरू हुए रथयात्रा मेले का यह 221वां वर्ष है। जगन्नाथ पुरी को छोड़कर आए मुख्य पुजारी तेजोनिधि ब्रह्मचारी ने 1790 में काशी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। इसके 12 साल बाद रथ यात्रा मेले की शुरुआत कराई थी। आगे चलकर यहीं पर उन्होंने समाधि भी ले ली थी।