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New Delhi: प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate-ED) के निदेशक संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) का डायरेक्टर के तौर पर कार्यकाल बढ़ाने वाले केंद्र सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अवैध करार दिया है. कोर्ट ने ईडी के निदेशक संजय मिश्रा के डायरेक्टर के तौर पर कार्यकाल को घटा दिया है. अब संजय मिश्रा का कार्यकाल 31 जुलाई तक रहेगा. पहले संजय मिश्रा को 18 नवंबर को रिटायर होना था. केन्द्र सरकार ने तीसरी बार उनका कार्यकाल बढ़ाया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा 31 जुलाई तक आपके पास नए डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए पर्याप्त समय है, इस दौरान केंद्र सरकार नए निदेशक का चयन कर ले.” हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने  CVC और DSPE एक्ट में किए गए  संसोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा.

2021 का फैसला

2018 में ED निदेशक बने संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 2020 में खत्म हो रहा था, लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें 1 साल का सेवा विस्तार दिया. एनजीओ कॉमन कॉज ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 

8 सितंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मिश्रा का विस्तारित कार्यकाल 18 नवंबर को खत्म हो रहा है इसलिए अब इसमें दखल नहीं दिया जाएगा लेकिन इसके आगे उनका कार्यकाल न बढ़ाया जाए.

कोर्ट ने कहा- कार्यकाल बढ़ाने वाले कानून में हुआ बदलाव वैध

कोर्ट ने 2021 में कार्यकाल बढ़ाने वाले कानून में हुए बदलाव को वैध बताया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी जांच एजेंसी के डायरेक्टर के कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है। लेकिन सरकार को इसकी ठोस वजह लिखित में बतानी होगी।

2021 में ही SC के फैसले के खिलाफ केंद्र अध्यादेश लाई

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए केंद्र सरकार 14 नवंबर 2021 को एक अध्यादेश ले आई. इसके तहत ED निदेशक का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने की व्यवस्था की गई. इसी आधार पर मिश्रा को फिर से 1 साल का कार्यकाल दिया गया.

नवंबर 2022 में यह अवधि पूरी होने पर उन्हें एक बार और 1 साल का सेवा विस्तार दिया गया. इस लिहाज से इस साल 18 नवंबर में उन्हें पद पर रहते हुए 5 साल पूरे हो रहे थे. हालांकि, अब कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें 31 जुलाई को अपने पद से हटना होगा. 

कांग्रेस और TMC नेताओं ने केंद्र के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की

केंद्र के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। कांग्रेस नेता जया ठाकुर, रणदीप सुरजेवाला, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, साकेत गोखले की तरफ से दायर की। याचिकर्ताओं ने कहा कि ED एक ऐसी संस्था है, जो देश और हर राज्य के सभी तरह के मामलों की जांच करती है। ऐसे में इसको स्वतंत्र होना चाहिए। 8 मई की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वे इतने जरूरी हैं कि सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद उनका कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है।

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