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Supreme Court on Delhi ordinance : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ा अध्यादेश का मामला संवैधानिक पीठ को भेज दिया, जहां 5 जजों वाली संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस (CJI) ने गुरुवार (20 जुलाई) को कहा कि इस बात पर लंबी सुनवाई जरूरी है कि सेवाओं को अध्यादेश के जरिए दिल्ली विधानसभा के दायरे से बाहर कर देना सही है या नहीं. ये अध्यादेश केंद्र सरकार ने बीती 19 मई को जारी किया था. दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि संसद में बिल पेश हो जाने के बाद अध्यादेश के मसले पर विचार की जरूरत ही नहीं रहेगी। इस बात पर सीजेआई ने कहा कि हम तब तक इंतजार नहीं कर सकते हैं।

जानें क्या है दिल्ली अध्यादेश

दिल्ली अध्यादेश 2023 के तहत दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों (ग्रुप-ए) के ट्रांसफर और नियुक्ति का अधिकार उपराज्यपाल को दिया गया है। इस अध्यादेश के तहत केंद्र ने नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया है।इस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव को सदस्य बनाया गया है। गौरतलब है कि यही अथॉरिटी दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर का फैसला करेगी। हालांकि, अथॉरिटी के बीच किसी तरह का विवाद खड़ा हुआ तो अंतिम फैसले उपराज्यपाल करेंगे।

आप सरकार कर रही इसका विरोध

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार दिल्ली में नौकरशाहों की नियुक्ति और स्थानांतरण से जुड़े इस अध्यादेश का विरोध कर रही है. केंद्र की ओर से जारी किए गए इस अध्यादेश में दानिक्स कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही और तबादलों के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान है.

संसद के मानसून सत्र में पेश होगा विधेयक

केंद्र सरकार गुरुवार से शुरु हुए संसद के मानसून सत्र में इस अध्यादेश को लेकर विधेयक भी पेश करने वाली है. आम आदमी पार्टी इस अध्यादेश का पुरजोर विरोध कर रही है. आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इस अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी कर चुके हैं. 

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