Gyanvapi Case ASI Survey: वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी सर्वे के पक्ष में फैसला सुनाया है. 14 जुलाई को करीब डेढ़ घंटे तक हुई बहस के बाद जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के रडार तकनीक से सर्वे कराने के आवेदन को मंजूर कर लिया है। मुस्लिम पक्ष ने सर्वे पर रोक लगाने की याचिका दाखिल की थी जिसपर यह फैसला सुनाते हुए वाराणसी कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया।
इससे पहले करीब डेढ़ घंटे तक हुई बहस के बाद जिला जज ने आदेश के लिए पत्रावली सुरक्षित कर ली थी। जिसके के लिए 21 जुलाई की तारीख तय कर दी थी। सभी पक्षों की मौजूदगी में जिला जज ने ये आदेश दिया है। सर्वे में बिना क्षति पहुचाएं पत्थरों, देव विग्रहों, दीवारों सहित अन्य निर्माण की उम्र का पता लग जाएगा। वहीं, विपक्षी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सर्वे कराने के आवेदन का विरोध किया है।

हाई कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान कार्बन डेटिंग का दिया आदेश
बीते 12 मई को हाई कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग का आदेश दिया है। इसके बाद 19 मई को मंदिर पक्ष ने जिला वाराणसी की अदालत में पूरे ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक विधि से जांच की मांग करते हुए प्रार्थना पत्र दिया था। उनका कहना था कि ज्ञानवापी के उस हिस्से जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील है को छोड़कर पूरे परिसर की वैज्ञानिक विधि से जांच की जानी चाहिए। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को आदेश देने की मांग किया। इसका विरोध करते हुए मस्जिद पक्ष ने अदालत में कहा कि इससे वहां मौजूद मस्जिद को नुकसान पहुंचेगा। इससे मुकदमे का महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रभावित होगा। उनका कहना था कि बीते वर्ष मई माह में पांच दिन एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही हुई जिसकी रिपोर्ट अदालत में दाखिल है। इस पर अभी तक चर्चा नहीं हो सकी है। ऐसे में एक और सर्वे की मांग को खारिज किया जाना चाहिए।
सर्वे के इन माध्यमों पर जिला जज से अपील
जिला जज से हिंदू पक्ष के एडवोकेट ने निवेदन किया था कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराना अपरिहार्य है। इससे सनातनी हिंदुओं में तनावपूर्ण वातावरण व्याप्त है। ज्ञानवापी मामले को लेकर उपजे तनाव का सौहार्दपूर्ण समाधान वैज्ञानिक तथ्य सामने आने पर हो जाएगा। मुस्लिम पक्ष को भी इस पर तैयार होना चाहिए और सर्वे से किसी भी तरह की वर्तमान स्थिति को क्षति नहीं होगी।
हिंदू पक्ष के एडवोकेट ने निवेदन किया था कि आर्कोलॉजी के विशेषज्ञ रडार पेनिट्रेटिंग, एक्सरे पद्धति, रडार मैपिंग, स्टाइलिस्ट डेटिंग आदि पद्धति का प्रयोग कर सकते हैं।स्टाइलिस्ट डेटिंग में किसी संरचना के निर्माण शैली से उसके सदियों पुराने स्थिति का आकलन कर पुरातत्व के विशेषज्ञ स्पष्ट और प्रमाणित कर देते हैं कि उस संरचना का कौन-सा काल खंड है। ज्ञानवापी परिसर में किस काल खंड में कौन-सी संरचना से मंदिर बना था, यह भी रिपोर्ट में होगा।
स्वास्तिक, त्रिशूल, डमरू और कमल चिह्न मिले थे
वाराणसी कोर्ट में वकील विष्णुशंकर जैन ने दलील दी कि ज्ञानवापी की 14 से 16 मई के बीच हुए सर्वे में 2.5 फीट ऊंची गोलाकार शिवलिंग जैसी आकृति के ऊपर अलग से सफेद पत्थर लगा मिला। उस पर कटा हुआ निशान था। उसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहराई पाई गई। पत्थर की गोलाकार आकृति के बेस का व्यास 4 फीट पाया गया। ज्ञानवापी में कथित फव्वारे में पाइप के लिए जगह ही नहीं थी, जबकि ज्ञानवापी में स्वास्तिक, त्रिशूल, डमरू और कमल जैसे चिह्न मिले। मुस्लिम पक्ष कुंड के बीच मिली जिस काले रंग की पत्थरनुमा आकृति को फव्वारा बता रहा था, उसमें कोई छेद नहीं मिला है। न ही उसमें कोई पाइप घुसाने की जगह है।